काशी के कण-कण में शिव बसते है यहां शिव के अनेक रूप भी हैं। शिव के इस आनंद वन में शिव के चमत्कारों की कोई कमी नहीं है, कभी काल भैरव में रूप में रक्षा करते हैं तो कभी बाबा विश्वनाथ के रूप में अपने भक्तों को तारक मंत्र से तारते हैं। इन रूपों के आलावा महादेव एक और रूप में काशी मे वास करते है इन्हें तिलभांडेश्वर के नाम से जाना जाता है जो हर साल एक तिल के बराबर बढ़ते हैं।
कथा के अनुसार वर्षों पहले इसी स्थान पर विभाण्ड ऋषि ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तप किया था। इसी स्थान पर शिवलिंग के रूप में बाबा ने उन्हें दर्शन दिया था औऱ कहा था कि कलयुग में ये शिवलिंग रोज तिल के सामान बढे़गा और इसके दर्शन मात्र से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा मान्यता है कि बाबा तिलभाण्डेश्वर स्वयंभू हैं इस शिवलिंग में स्वयं भगवान शिव विराजमान हैं ।
मुस्लिम शासन के दौरान मंदिर को ध्वस्त करने के लिए तीन बार मुस्लिम शासकों ने सैनिकों को भेजा लेकिन हर बार भौरों के झुंड ने आक्रमण कारियो के ऊपर हमला कर दिया जिसके कारण मुस्लिम सैनिकों को वहाँ से उल्टे पाव वापस भागना पड़ा ।अंगेजी शासन के दौरान एक बार ब्रिटिश अधिकारियों ने शिवलिंग के आकार में बढ़ोत्तरी को परखने के लिए चारो ओर धागा बांध दिया जो अगले दिन टूटा मिला।
यहां बाबा पर जल, बेलपत्र के अलावा तिल भी चढ़ाया जाता है। इससे शनि दोष भी खत्म होता है और सुख की प्राप्ति होती है। बाबा तिलभाण्डेश्वर के हर दिन दर्शन करने से अन्नपूर्णा में वृद्धि और पापों से मुक्ति मिलती हैं।
🚩हर हर महादेव 🚩🙏🙏