जोधपुर/जम्मू. असल उत्तर के मैदान में जिस दिन अब्दुल हमीद को शहादत मिली उसी दिन शाम को 4 ग्रेनेडियर्स के दो जवानों ने ऐसा काम कर दिखाया था कि पाकिस्तान के पैर उखड़ने शुरू हो गए थे। अपने ही टैंकों को जलाकर भागने लगे थे पाकिस्तानी फौजी।
इन दोनों की दोस्ती की मिसाल 1965 में युद्ध के मैदान में भी दी गई थी और आज भी दी जाती है। आला अधिकारी इन्हें आज भी शरारती दोस्त बुलाते हैं। यह हैं मोहम्मद शफीक और मोहम्मद नौशाद। उस दिन ऐसा क्या हुआ था आईए जानते हैं शफीक की जुबानी...
साहब वो अमृतसर पर कब्जे के ईरादे से आगे बढ़ रहे थे, हमने मार गिराए
साहब मैं और नौशाद दोनों दोस्त हैं। एक ही साथ आर्मी जॉइन किए थे और हमेशा साथ रहते थे। उस रात भी हम साथ ही थे। दरअसल अब्दुल हमीद की पोजिशन के ठीक बाईं तरफ सड़क पर थोड़ा सा पीछे एक पेड़ था। उसी के नीचे हमारी एलएमजी लगी हुई थी। वो अग्रिम मोर्चा था, जिसे जल्दबाजी में दुश्मन पर नजर रखने के लिए बनाया गया था। वहां कौन बैठेगा, यही बात हो रही थी। मैंने लेफ्टिनेंट जानू को बोला, साहब को अगर आप मेरे साथी नौशाद को मेरे साथ करदें, तो मैं वहां बैठने के लिए तैयार है।
10 सिंतबर की सुबह अब्दुल हमीद शहीद हो गए थे। इसके बाद माहौल थोड़ा ठंडा सा पड़ गया था। हालांकि गोलीबारी जारी थी, लेकिन हमीद की जीप को उड़ाकर पाकिस्तानी सेना में खुशी का माहौल था। अब वे आगे बढ़ने की तैयारी में जुट गए थे। पाकिस्तान के कमांडरों को शायद गलत सूचना मिल गई कि आगे रास्ता साफ है, आप अमृतसर की तरफ कूच कीजिए।
0 comments: