Thursday, 24 September 2015

रतन टाटा का हुआ था अपमान, 9300 करोड़ में कंपनी खरीदकर लिया था बदला


मुंबई. जर्मन कंपनी फॉक्सवैगन की कारों के इमिशन टेस्टिंग (प्रदूषण जांच) में गड़बड़ी सामने आने पर पूरी दुनिया का ऑटो सेग्मेंट हिल उठा। कंपनी ने खुद खुलासा किया कि कार में ऐसा सॉफ्टवेयर डाला गया, जिसके जरिए इमिशन टेस्ट के सही नतीजे सामने ही नहीं आते थे। बताया जा रहा है फॉक्सवैगन जैसी कंपनी में पहली बार इतनी बड़ी गड़बड़ी सामने आई है। इसके पहले इंडिया के ऑटो सेग्मेंट में एक ऐसी ही हलचल मशहूर बिजनेसमैन रतन टाटा के कारण हुई थी। हांलाकि हलचल किसी गड़बड़ी के कारण नहीं, बल्कि जगुआर कंपनी को अपमान के बदले के रूप में खरीदने के कारण हुई थी। बदले के रूप में जगुआर को खरीदने की घटना टाटा के बेहद करीबी प्रवीण काडले ने उजागर की थी। मौका था मुंबई में टाटा को दिए गए वाईबी चव्हाण पुरस्कार समारोह का। टाटा की जगह काडले ने पुरस्कार लिया और फोर्ड से लिए गए कारोबारी बदले की कहानी सुनाई... कहते हैं, आम लोग अपमान का बदला तत्काल लेते हैं, पर महान उसे अपनी जीत का साधन बना लेते हैं। रतन टाटा के कारोबारी फैसलों से इसे साफ-साफ समझा जा सकता है। एक वाकया सुनाता हूं। रतन टाटा 1998 में हैचबैक कार इंडिका लेकर आए थे। लेकिन यह लॉन्च बुरी तरह फेल रहा। एक साल तक लोगों ने इसे पसंद ही नहीं किया। बिक्री नहीं के बराबर हो रही थी। तब कुछ लोगों ने रतन टाटा को कार डिवीजन बेचने की सलाह दी। उन्होंने भी मान ली। कई कंपनियों से संपर्क किया गया। अमेरिकी कंपनी फोर्ड ने रुचि दिखाई। उसके अधिकारी टाटा के मुख्यालय बॉम्बे हाउस आए। शुरुआती बातचीत के बाद हमें फोर्ड हेडक्वार्टर डेट्रॉयट बुलाया गया। चेयरमैन रतन टाटा के साथ मैं भी वहां गया। हमने करीब तीन घंटे तक बात की। लेकिन हमारे साथ उनका रवैया अपमानजनक था। लंबी बातचीत के दौरान कंपनी के चेयरमैन बिल फोर्ड ने कहा कि ‘जब आपको पैसेंजर कार के बारे में कुछ पता ही नहीं था तो बिजनेस शुरू क्यों कर दिया। हम इसे खरीदकर आप पर एहसान ही करेंगे।’ हमने उसी शाम डेट्रॉइट से न्यूयॉर्क लौटने का फैसला किया। 90 मिनट की फ्लाइट में रतन टाटा उदास से रहे। इस घटना के नौ साल बाद 2008 में फोर्ड दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई। अमेरिकी ऑटो हब डेट्रॉयट की ही हालत खराब हो चली थी। तब टाटा ने फोर्ड का लग्जरी ब्रांड जगुआर-लैंडरोवर (जेएलआर) खरीदने का फैसला किया। बात करने फोर्ड के अधिकारी बॉम्बे हाउस आए थे। सौदा 2.3 अरब डॉलर (उस समय 9300 करोड़ रुपए) में हुआ। तब बिल फोर्ड ने टाटा से कहा- ‘जेएलआर खरीदकर आप हम पर बहुत बड़ा अहसान कर रहे हैं।’ दरअसल जेएलआर से फोर्ड को भारी नुकसान हो रहा था। कुछ ही साल में टाटा जेएलआर को मुनाफे में ले आए।

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