Monday, 27 November 2017

रोहित सरदाना को एक तर्कपूर्ण प्रश्न पूछे जाने मात्र पर जान से मारने की धमकियाँ मिल रही हैं

रोहित सरदाना को एक तर्कपूर्ण प्रश्न पूछे जाने मात्र पर जान से मारने की धमकियाँ मिल रही हैं और ये धमकियाँ कोरी धमकियाँ मात्र नहीं हैं, इनके पीछे वास्तविक हिंसा की सदियों पुरानी परंपरा है | चार्ली हेब्दो भी सभी को याद ही है |

पूरी की पूरी पत्रकार बिरादरी में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के इस हनन पर कोई चूँ तक नहीं कर रहा | वहीं सरकारी तंत्र तक में साहस नहीं है कि खुल के रोहित सरदाना को सुरक्षा देने के अपने सामान्य प्रशासनिक दायित्व की घोषणा तक करके शासन व्यवस्था पर जनता का विश्वास ही कायम कर सके |

रोहित सरदाना अकेला पड़ गया हैं | अधिक से अधिक उसके कुछ शुभचिंतक होंगे जो उसे यह नसीहत भर ही दे रहे होंगे कि उसे सोच समझ कर बोलना चाहिए था |

अगर आज रोहित सरदाना के साथ सरकार और राष्ट्रवादी खड़े नहीं हुए तो बहुत भयानक निराशा घर करेगी हैं साहस दिखा रहे राष्ट्रवादियों के मन में, फ़िर कोई रोहित सरदाना नहीं खड़ा होगा, फिर कोई रोहित के पक्ष में नहीं खड़ा हो पाएगा, फिर कोई सच नहीं बोल पाएगा |

क्या राष्ट्रवादी वाकई में ऐसे दोराहे पर आ खड़े हुए हैं जहाँ एक ओर खाई है तो दूसरी ओर कुआँ ?

कम से कम यह सोशल मीडिया बिरादरी ही हो जो खुल के रोहित सरदाना के समर्थन में बोले, खुल कर और जम कर बोले | शब्दों में ही सही, रोहित सरदाना के साथ खड़े तो हों |

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